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India बिहार लोकसभा चुनाव 2024

औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र का इतिहास और वर्तमान, अभी तक किसी सांसद को नहीं मिला मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी

पटना, बिहार।

सेंट्रल डेस्क, द साइलेंस मीडिया

औरंगाबाद लोक सभा क्षेत्र भारतीय लोकतंत्र के शुरुआत से ही है। 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहां से सत्येंद्र नारायण सिंह कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए थे। इस क्षेत्र की विशेषता यह है कि यहां से आज तक राजपूत जाति के अलावा किसी भी अन्य जाति का कोई भी सांसद चुनाव नहीं जीत सका है। साथ ही दूसरी विशेषता यह है कि इस निर्वाचन क्षेत्र से जीते किसी भी सांसद को आज तक मंत्री नहीं बनाया गया। इस संसदीय क्षेत्र में गया जिले की तीन विधानसभा और औरंगाबाद जिले की तीन विधानसभा आते हैं।


औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र –


औरंगाबाद लोक सभा क्षेत्र 1951 से ही है। उस समय यह क्षेत्र गया जिले का हिस्सा हुआ करता था। बाद में औरंगाबाद जिला बनने के बाद भी जिले के सभी विधानसभा नबीनगर ओबरा गोवा कुटुंब औरंगाबाद सदर और रफीगंज को मिलाकर औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र बरकरार रहा। 
2009 के  नए परिसीमन में औरंगाबाद जिले के तीन विधानसभा कुटुंबा, रफीगंज और औरंगाबाद सदर और गया जिले के तीन विधानसभा इमामगंज, गुरुआ और टेकारी को मिलाकर नया औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र बनाया गया है।

2019 लोकसभा चुनाव में औरंगाबाद सीट से महागठबंधन प्रत्याशी रहे उपेंद्र प्रसाद, साथ में हैं सदर विधायक आनंद शंकर सिंह ( फ़ोटो- राजेश रंजन)

औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र का इतिहास-

औरंगाबाद सीट कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। इस सीट पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा सबसे अधिक 6 बार  सांसद रहे। वे 1951, 1957,1971, 1977, 1980 में लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे।
हालांकि वे 1971 और 1977 में भारतीय लोकदल से और 1980 में जनता दल से सांसद रहे। इसके बाद सत्येंद्र नारायण सिन्हा 1984 में कांग्रेस से लोकसभा का चुनाव जीते। इसी बीच उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनने का भी मौका मिला लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद वे आगे कोई भी चुनाव नहीं जीत सके।
1962 में रामगढ़ के राजपरिवार से आई ललिता राजलक्ष्मी ने स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की। वहीं 1967 में कांग्रेस के मुंद्रिका सिंह ने जीत दर्ज की।

1989 के चुनाव में बीपी सिंह की लहर में जनता दल के रामनरेश सिंह उर्फ लूटन बाबू ने उनकी पुत्रवधु कांग्रेस प्रत्याशी श्यामा सिंह को मात दी थी। इसके बाद 1991 में रामनरेश सिंह दूसरी बार सांसद बने। साल 1996 में तो गज़ब हो गया। नबीनगर से जनता दल के नवनिर्वाचित विधायक वीरेंद्र कुमार सिंह ने समता पार्टी के रामनरेश सिंह और कांग्रेस के सत्येंद्र नारायण सिन्हा को हराकर संसद में प्रवेश किया। वहीं 1998 के मध्यावधि चुनाव में रामनरेश सिंह के पुत्र सुशील कुमार सिंह समता पार्टी के टिकट पर निर्वाचित हुए। एक साल बाद 1999 में फिर से हुए मध्यावधि चुनाव में सत्येंद्र नारायण सिंन्हा की पुत्रवधू श्यामा सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुन ली गई। वहीं 2004 में कांग्रेस से ही सत्येंद्र नारायण सिन्हा के पुत्र और दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त निखिल कुमार सांसद चुने गए।
साल 2009 के चुनाव में  सुशील कुमार सिंह एक।बार पुनः जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर चुने गए। सुशील सिंह 2014 और 2019 में भी चुनाव जीत कर हैट्रिक बनाया है। हालांकि इन दोनों चुनावों में वे भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की है। सत्येंद्र नारायण सिंह के 6 बार के बाद सबसे अधिक चार बार सांसद बनने का रिकॉर्ड सुशील कुमार सिंह के नाम है।

कभी कांग्रेस के गढ़ के रूप में जाने जा रहे औरंगाबाद सीट पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है। रामनरेश सिंह के पुत्र सुशील सिंह सांसद बने हैं। लोकसभा चुनाव में सत्येंद्र नारायण सिंह और रामनरेश सिंह उर्फ लूटन बाबू का परिवार आमने-सामने रहा है। दोनों परिवारों से अबतक 17 बार में से 14 बार कब्जा रहा है।

कांग्रेस के पूर्व सांसद निखिल कुमार राहुल गांधी के साथ ( फोटो- राजेश रंजन)

कौन किस पर हावी जनता पर किसकी है पकड़

साल 2019 में हुए चुनाव में महागठबंधन की तरफ से पूर्व एमएलसी उपेंद्र प्रसाद वर्मा चुनाव मैदान में थे। जहां उन्होंने एक कड़े मुकाबले में वर्तमान सांसद भाजपा के सुशील सिंह से चुनाव हार गए थे। इस बार फिर वह प्रमुख रूप से दावेदार हैं। साल 2019 में भाजपा के सुशील सिंह को 427721 मत प्राप्त हुए थे वहीं महागठबंधन के हम सेक्युलर पार्टी नेता उपेंद्र प्रसाद को 357169 मत प्राप्त हुए थे। इस तरह जीत हर का अंतर 70552 मतों का रहा था। इस सीट पर यह कहना मुश्किल है कि कौन जीतने की स्थिति में है। हालांकि दो बार पिता रामनरेश सिंह और चार बार खुद के सांसद रहने से सुशील सिंह की स्थिति वर्तमान में मजबूत है। वहीं सत्येंद्र नारायण सिंह के पुत्र और पूर्व सांसद निखिल कुमार भी मजबूत स्थिति में माने जाते हैं।

इस बार भी एनडीए और इंडिया में होगा सीधा मुकाबला

हर बार की तरह साल 2024 का लोकसभा चुनाव में भी इंडिया और एनडीए के बीच सीधा मुकाबला होगा। जहां एनडीए के तरफ से वर्तमान सांसद सुशील कुमार सिंह मजबूत दावेदार के तौर पर सामने है वहीं इंडिया गठबंधन के तरफ से पूर्व प्रत्याशी उपेंद्र प्रसाद राजद में सबसे मजबूत दावेदारी पेश की है। वहीं कांग्रेस से पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार  और पूर्व मंत्री अवधेश सिंह भी प्रमुख दावेदारों में शामिल है।
भारतीय जनता पार्टी में वर्तमान सांसद सुशील कुमार सिंह का जमकर विरोध भी हो रहा है। पूर्व मंत्री रामाधार सिंह, सुशील सिंह की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं। वहीं इंजीनियर से नेता बने प्रवीण कुमार सिंह औरंगाबाद से भाजपा के दावेदारी में लगे हुए हैं।

औरंगाबाद संसदीय सीट 1951 से अब तक


औरंगाबाद संसदीय सीट पर शुरू से ही समाजवादियों का पकड़ बरकरार रहा है। यहां या तो कांग्रेस या तो समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियां चुनाव जीतते रहे हैं। साल 1962 में समाजवादी विचारधारा वाली स्वतंत्र पार्टी ने कब्जा किया था। वहीं 1972, 1977 में भारतीय लोक दल,  1980 में जनता पार्टी,  1989, 1991 और 1996 में जनता दल, 1998 में समता पार्टी, 2009 में जनता दल यूनाइटेड जैसी समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियां चुनाव जीती हैं।
 
   वहीं 1951, 1957, 1967, 1984, 1999 और 2004 में कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया है। साल 2014 और 2019 में भाजपा ने कब्जा जमाया है।

औरंगाबाद लोकसभा की पहचान

इस लोकसभा की पहचान कभी सोन नदी और उसके सिंचित क्षेत्र के लिए होती थी। नए परिसीमन के बाद अब इसकी पहचान सुखाड़ ग्रस्त क्षेत्र के रूप में हो रही है। उत्तर कोयल नहर परियोजना और हाड़ियाही नहर परियोजना का पूरा नहीं होना इस क्षेत्र का प्रमुख चुनावी मुद्दा है।  हालांकि औरंगाबाद जिला मुख्यालय पर एक सीमेंट फैक्ट्री लगाई गई है जो जिले के लिए वरदान काम और अभिशाप ज्यादा साबित हो रहा है। क्योंकि सीमेंट फैक्ट्री से भूजल दोहन के कारण शहर में पानी की समस्या खड़ी हो गई है। संसदीय क्षेत्र से कोलकाता मुंबई मुख्य रेल मार्ग और दिल्ली कोलकाता मुख्य राजमार्ग जीटी रोड गुजरा है। लेकिन किसी तरह का उद्योग धंधे इस क्षेत्र में नहीं लगाए गए हैं।

जातीय समीकरण

औरंगाबाद लोकसभा सीट का जातीय समीकरण की बात करें तो सबसे ज्यादा वोटर राजपूत जाति से हैं जिनका वोट लगभग 2 लाख के आसपास है।  हालांकि यादव मतदाता भी 1 लाख 90 हजार के लगभग हैं और दूसरे स्थान पर हैं। इसके बाद मुस्लिम मतदाता 1.25 लाख हैं।  कुशवाहा मतदाताओं की संख्या भी करीब 1.25 लाख के ही आसपास है। इसके बाद भूमिहारों की जनसंख्या एक लाख और दलित और महादलितों की आबादी लगभग 19 फीसदी यानी 2 लाख से भी ज्यादा है। इनका वोट भी जीत के लिए काफी असर रखता है। वहीं अतिपिछड़ा आबादी भी मजबूत स्थिति में है। अतिपिछड़ा वोट ही निर्णायक होता है।
वर्तमान में इस लोकसभा क्षेत्र में औरंगाबाद जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्र पर महागठबंधन का कब्जा है। जिसमें कुटुंबा से कांग्रेस के राजेश राम, औरंगाबाद सदर से कांग्रेस के आनंद शंकर सिंह और रफीगंज से राष्ट्रीय जनता दल के मोहम्मद नेहालुद्दीन हैं। वहीं इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गया जिले के तीन विधानसभा क्षेत्र में इमामगंज से हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर, टिकारी से हिंदुस्तानी एवं मोर्चा सेक्युलर और गुरुआ से राष्ट्रीय जनता दल का विधायक है।

औरंगाबाद लोकसभा सीट पर मतदान की स्थिति-


2011 की जनगणना के मुताबिक 25 लाख की आबादी वाले औरंगाबाद में औसत साक्षरता दर 70.32 फीसदी है।
यहां कुल मतदाता- 1862027 हैं। जिसमें
पुरुष वोटर- 972621, महिला वोटर- 889373 और थर्ड जेंडर- 33 है।
साल 2014 में यहां 51.19 प्रतिशत और साल 2019 में 52.9 प्रतिशत मतदान हुआ था।

क्या सुशील सिंह दुबारा जीतने की स्थिति में हैं

औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र में 2024 का चुनाव में काफी कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। इस बार भाजपा सांसद सुशील सिंह की जीत की गारंटी नहीं है।  लंबे समय से पद पर बने रहने के कारण उनके खिलाफ लोगों में आक्रोश भी है तो कई लोग बदलाव भी चाहते हैं।  हालांकि यह सब कुछ इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार पर निर्भर करेगा कि इंडिया गठबंधन किसको अपना उम्मीदवार बनता है।

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छोटे दलों की अनदेखी करने से महागठबंधन को होगा नुकसान- संदीप सिंह समदर्शी

23 जून को विपक्षी दलों की एकता पर महागठबंधन की बैठक पर बोले जाप नेता

पटना, बिहार।


राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा गठबंधन के 23 जून को विपक्षी दलों के महागठबंधन की बैठक पर जन अधिकार पार्टी लोकतांत्रिक के नेता संदीप सिंह समदर्शी में कहा कि महागठबंधन के मिशन की सफलता के लिए छोटे-छोटे दलों को जोड़ने की आवश्यकता है।
23 जून को पटना में जो बैठक और पहल हो रही है, यह सार्थक और देश की राजनीति को एक नई दिशा देगी। लेकिन महागठबंधन के नेताओं को इस बात को देखना होगा कि बिहार समेत अन्य राज्यों में जो छोटे-छोटे दल हैं, वे भी अपना आधार रखते हैं और उनका भी जनता के बीच में पैठ है। उनकी इस बड़े गोलबंदी में कोई भूमिका का नहीं होना कहीं ना कहीं भाजपा के खिलाफ मजबूत गठबंधन बनाने का जो संकल्प है, उसमें रुकावट आ सकती है। जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) सुश्री कुमारी मायावती की बहुजन समाज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम को तवज्जो नही देना नुकसानदेह साबित हो सकता है।
चूंकि कोशी और सीमांचल में जन अधिकार पार्टी लोकतांत्रिक और एआईएमआईएम तो उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों बसपा मजबूत स्थिति में है। वहीं आंध्रप्रदेश सहित अन्य राज्यों में ओवैसी को नजरअंदाज करना महागठबंधन कमजोर और अन्य विपक्षी एकता की मुहिम कमजोर पड़ सकता है।

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लेट्स इंस्पायर बिहार की सफलता के लिए औरंगाबाद पहुंचे आईपीएस विकास वैभव, सदस्यों की संख्या हुई 45 हजार!

औरंगाबाद, बिहार।

गृह विभाग के विशेष सचिव आईपीएस विकास वैभव बिहार में लेट्स इंस्पायर बिहार मुहिम चला रहे हैं। इसके तहत वे बिहार के युवाओं की सोच बदलने और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए लगातार काम कर रहे हैं। वह 2003 बैच के बिहार कैडर के IPS अधिकारी हैं। वर्तमान में बिहार सरकार के गृह विभाग में विशेष सचिव के पद पर हैं। राज्य सरकार की दी गई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को वह बखूबी निभा रहे हैं।

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उन्होंने कैमूर में हुए कार्यक्रम के बाद वापस लौटते हुए औरंगाबाद में पत्रकारों को बताया कि बिहार का स्वर्णिम इतिहास रहा है। हम उसी इतिहास को वापस लाने का काम करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जिस समय यहां सड़क नहीं थी, टेक्नोलॉजी नहीं थी, कम्युनिकेशन नहीं था, उस समय क्या ऊर्जा रही होगी? क्या विजन रहा होगा? जिसने अखंड भारत के साम्राज्य को स्थापित कर दिया। वे जब यूथ को देखते हैं तो उनसे कहते हैं कि हर व्यक्ति के अंदर अपनी ऊर्जा है। अगर, ऊर्जा का इस्तेमाल सही दिशा में किया जाए तो वर्तमान भी अच्छा होगा और भविष्य भी। यदि ऊर्जा का इस्तेमाल आप संघर्ष में लगाएंगे, छोटी-छोटी बातों में उलझेंगे, जातिवाद के चक्कर में आपकी ऊर्जा नष्ट होगी और सम्प्रदाय के नाम पर आप लड़ते रहेंगे। जहां ऊर्जा नहीं लगनी चाहिए, वहां आप लगाएंगे तो यह व्यर्थ होगा।

आईपीएस विकास वैभव

रोजगार को लेकर यह न सोचें कि कोई आएगा, हमें नौकरी देगा। जबकि, हमें इस पर सोचना चाहिए कि हम कैसे रोजगार के लिए रास्ता बनाएं? कैसे हम दूसरों को नौकरी दें? जब आप पुराने अर्थशास्त्र और उससे जुड़ी प्रतिलिपियों को पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि पाटलिपुत्र में छोटे-छोटे काफी सारे उद्योग चलते थे। आज हमारी सोच संकीर्ण क्यों हो जाती है कि IIT से M.TECH करने के बाद हमारी सरकारी नौकरी ही हो जाए। इन प्वाइंट्स पर युवाओं से बात करके हम लोग चाहते हैं कि उनकी सोच बदले। जीरो की जननी, गणित और विज्ञान की यह भूमि यदि आज अच्छी सोच और दृष्टि के साथ आगे बढ़ने लगे, संघर्ष छोड़कर सहयोग की भावना के साथ चलने लगे, व्यक्ति को व्यक्ति के साथ जोड़कर बढ़ने लगे तब राष्ट्र का निर्माण होगा।

45 हजार सदस्य हैं जिले में

आईपीएस ने बताया कि उधमिता और बिहार के विकास को लेकर हो रहे इस कार्यक्रम में शुरुआत जब किए थे तो औरंगाबाद जिले में बहुत कम सदस्य थे लेकिन आज उनके साथ सदस्यों की संख्या 45 हजार के लगभग हो गई है। उन्होंने बताया कि समाज के जो अच्छे लोग हैं उनको इसमें आगे आना चाहिए और बिहार के विकास में सहयोग करना चाहिए। उन्होंने बताया कि वे सिर्फ देश ही नहीं देश के बाहर भी ऐसे कार्यक्रम किए हैं जहां रह रहे बिहार वासियों को उन्होंने अपने राज्य के लिए कुछ करने की बात कही और लोग भी इस बात को मान रहे हैं।  उन्हें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में बिहार का परचम देश दुनिया में लहरायेगा।

उन्होंने अपना संस्मरण बताते हुए कहा कि जब वे नालंदा विश्वविद्यालय घूमने गए तो जाना कि प्राचीन काल में कैसे लोग वहां पढ़ने आते थे। आज हमारे बच्चे कोटा में पढ़ने जा रहे हैं। मेरी नौकरी विदेश में भी लगी। देश के अंदर इंफोसिस में भी लगी। तब भी मेरे मन में यह सवाल था कि कभी न कभी तो मैं बिहार लौटकर आऊंगा। मेरे मन में सवाल यह भी था कि समाज के लिए मैंने क्या योगदान किया? इसके बाद मुझे लगा कि सिविल सर्विस समाज की मदद के लिए एक अच्छा साधन है। इसके जरिए सकारात्मक योगदान समाज के लिए किया जा सकता है। फिर इसी रूप में मैंने तैयारी की।

परिवर्तन को मैंने होते देखा है। जितने भी युवाओं से मुलाकात होती है। ऑनाइलन व सोशल मीडिया के जरिए बात होती है तो उन्हें बताता हूं। एक वक्त था जब बगहा को मिनी चंबल कहा जाता था। वहां डकैतों का बोलबाला था। लोग कहते थे कि वहां वाल्मिकी के समय से ही अपराध चला आ रहा है। वहां पुलिस के कई ऑपरेशन चले। इसके बाद भी वहां कभी क्राइम की वारदातें नहीं रुकीं। किसी अंग्रेज ने भी वहां के लिए लिख दिया कि यूनिवर्सिटी ऑफ क्राइम। बगहा में अपराधी चुनाव तक लड़ने लगे थे। रंगदारी मांगने का तरीका भी बिल्कुल अलग था। इसके जवाब बाद भी मैंने जब चिंतन शुरू किया तो समझा कि इनकी आर्थिक रीढ़ को तोड़नी होगी। उस हिसाब से प्लान किया। हमने इलाके के लोगों से बातचीत की। भूले-भटके लोगों को समाज से जोड़ने की कोशिश की।

 ऑनलाइन और सोशल मीडिया के माध्यम से लोग जुड़ रहे हैं। शिक्षा, समता और उद्यमिता को लेकर काम करने के करीब 45 हजार से अधिक इच्छुक लोग इस अभियान से जुड़ चुके हैं। हर जिले में चैप्टर बना है। इसमें बिहार में रहने वाले और दूसरे जगहों पर रह रहे बिहार के लोग जुड़ रहे हैं। हमलोग एक नेटवर्क बनाने में जुटे हैं, जिसमें वो लोग जो बिहार से बाहर भी हैं वो अपने स्कूल और गांव के माध्यम से जुड़ रहे हैं और कुछ योगदान कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंद को अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं।