पटना, बिहार।
सेंट्रल डेस्क, द साइलेंस मीडिया
औरंगाबाद लोक सभा क्षेत्र भारतीय लोकतंत्र के शुरुआत से ही है। 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहां से सत्येंद्र नारायण सिंह कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए थे। इस क्षेत्र की विशेषता यह है कि यहां से आज तक राजपूत जाति के अलावा किसी भी अन्य जाति का कोई भी सांसद चुनाव नहीं जीत सका है। साथ ही दूसरी विशेषता यह है कि इस निर्वाचन क्षेत्र से जीते किसी भी सांसद को आज तक मंत्री नहीं बनाया गया। इस संसदीय क्षेत्र में गया जिले की तीन विधानसभा और औरंगाबाद जिले की तीन विधानसभा आते हैं।
औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र –
औरंगाबाद लोक सभा क्षेत्र 1951 से ही है। उस समय यह क्षेत्र गया जिले का हिस्सा हुआ करता था। बाद में औरंगाबाद जिला बनने के बाद भी जिले के सभी विधानसभा नबीनगर ओबरा गोवा कुटुंब औरंगाबाद सदर और रफीगंज को मिलाकर औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र बरकरार रहा।
2009 के नए परिसीमन में औरंगाबाद जिले के तीन विधानसभा कुटुंबा, रफीगंज और औरंगाबाद सदर और गया जिले के तीन विधानसभा इमामगंज, गुरुआ और टेकारी को मिलाकर नया औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र बनाया गया है।
औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र का इतिहास-
औरंगाबाद सीट कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। इस सीट पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा सबसे अधिक 6 बार सांसद रहे। वे 1951, 1957,1971, 1977, 1980 में लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे।
हालांकि वे 1971 और 1977 में भारतीय लोकदल से और 1980 में जनता दल से सांसद रहे। इसके बाद सत्येंद्र नारायण सिन्हा 1984 में कांग्रेस से लोकसभा का चुनाव जीते। इसी बीच उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनने का भी मौका मिला लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद वे आगे कोई भी चुनाव नहीं जीत सके।
1962 में रामगढ़ के राजपरिवार से आई ललिता राजलक्ष्मी ने स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की। वहीं 1967 में कांग्रेस के मुंद्रिका सिंह ने जीत दर्ज की।
1989 के चुनाव में बीपी सिंह की लहर में जनता दल के रामनरेश सिंह उर्फ लूटन बाबू ने उनकी पुत्रवधु कांग्रेस प्रत्याशी श्यामा सिंह को मात दी थी। इसके बाद 1991 में रामनरेश सिंह दूसरी बार सांसद बने। साल 1996 में तो गज़ब हो गया। नबीनगर से जनता दल के नवनिर्वाचित विधायक वीरेंद्र कुमार सिंह ने समता पार्टी के रामनरेश सिंह और कांग्रेस के सत्येंद्र नारायण सिन्हा को हराकर संसद में प्रवेश किया। वहीं 1998 के मध्यावधि चुनाव में रामनरेश सिंह के पुत्र सुशील कुमार सिंह समता पार्टी के टिकट पर निर्वाचित हुए। एक साल बाद 1999 में फिर से हुए मध्यावधि चुनाव में सत्येंद्र नारायण सिंन्हा की पुत्रवधू श्यामा सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुन ली गई। वहीं 2004 में कांग्रेस से ही सत्येंद्र नारायण सिन्हा के पुत्र और दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त निखिल कुमार सांसद चुने गए।
साल 2009 के चुनाव में सुशील कुमार सिंह एक।बार पुनः जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर चुने गए। सुशील सिंह 2014 और 2019 में भी चुनाव जीत कर हैट्रिक बनाया है। हालांकि इन दोनों चुनावों में वे भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की है। सत्येंद्र नारायण सिंह के 6 बार के बाद सबसे अधिक चार बार सांसद बनने का रिकॉर्ड सुशील कुमार सिंह के नाम है।
कभी कांग्रेस के गढ़ के रूप में जाने जा रहे औरंगाबाद सीट पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है। रामनरेश सिंह के पुत्र सुशील सिंह सांसद बने हैं। लोकसभा चुनाव में सत्येंद्र नारायण सिंह और रामनरेश सिंह उर्फ लूटन बाबू का परिवार आमने-सामने रहा है। दोनों परिवारों से अबतक 17 बार में से 14 बार कब्जा रहा है।
कौन किस पर हावी जनता पर किसकी है पकड़
साल 2019 में हुए चुनाव में महागठबंधन की तरफ से पूर्व एमएलसी उपेंद्र प्रसाद वर्मा चुनाव मैदान में थे। जहां उन्होंने एक कड़े मुकाबले में वर्तमान सांसद भाजपा के सुशील सिंह से चुनाव हार गए थे। इस बार फिर वह प्रमुख रूप से दावेदार हैं। साल 2019 में भाजपा के सुशील सिंह को 427721 मत प्राप्त हुए थे वहीं महागठबंधन के हम सेक्युलर पार्टी नेता उपेंद्र प्रसाद को 357169 मत प्राप्त हुए थे। इस तरह जीत हर का अंतर 70552 मतों का रहा था। इस सीट पर यह कहना मुश्किल है कि कौन जीतने की स्थिति में है। हालांकि दो बार पिता रामनरेश सिंह और चार बार खुद के सांसद रहने से सुशील सिंह की स्थिति वर्तमान में मजबूत है। वहीं सत्येंद्र नारायण सिंह के पुत्र और पूर्व सांसद निखिल कुमार भी मजबूत स्थिति में माने जाते हैं।
इस बार भी एनडीए और इंडिया में होगा सीधा मुकाबला
हर बार की तरह साल 2024 का लोकसभा चुनाव में भी इंडिया और एनडीए के बीच सीधा मुकाबला होगा। जहां एनडीए के तरफ से वर्तमान सांसद सुशील कुमार सिंह मजबूत दावेदार के तौर पर सामने है वहीं इंडिया गठबंधन के तरफ से पूर्व प्रत्याशी उपेंद्र प्रसाद राजद में सबसे मजबूत दावेदारी पेश की है। वहीं कांग्रेस से पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार और पूर्व मंत्री अवधेश सिंह भी प्रमुख दावेदारों में शामिल है।
भारतीय जनता पार्टी में वर्तमान सांसद सुशील कुमार सिंह का जमकर विरोध भी हो रहा है। पूर्व मंत्री रामाधार सिंह, सुशील सिंह की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं। वहीं इंजीनियर से नेता बने प्रवीण कुमार सिंह औरंगाबाद से भाजपा के दावेदारी में लगे हुए हैं।
औरंगाबाद संसदीय सीट 1951 से अब तक
औरंगाबाद संसदीय सीट पर शुरू से ही समाजवादियों का पकड़ बरकरार रहा है। यहां या तो कांग्रेस या तो समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियां चुनाव जीतते रहे हैं। साल 1962 में समाजवादी विचारधारा वाली स्वतंत्र पार्टी ने कब्जा किया था। वहीं 1972, 1977 में भारतीय लोक दल, 1980 में जनता पार्टी, 1989, 1991 और 1996 में जनता दल, 1998 में समता पार्टी, 2009 में जनता दल यूनाइटेड जैसी समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियां चुनाव जीती हैं।
वहीं 1951, 1957, 1967, 1984, 1999 और 2004 में कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया है। साल 2014 और 2019 में भाजपा ने कब्जा जमाया है।
औरंगाबाद लोकसभा की पहचान
इस लोकसभा की पहचान कभी सोन नदी और उसके सिंचित क्षेत्र के लिए होती थी। नए परिसीमन के बाद अब इसकी पहचान सुखाड़ ग्रस्त क्षेत्र के रूप में हो रही है। उत्तर कोयल नहर परियोजना और हाड़ियाही नहर परियोजना का पूरा नहीं होना इस क्षेत्र का प्रमुख चुनावी मुद्दा है। हालांकि औरंगाबाद जिला मुख्यालय पर एक सीमेंट फैक्ट्री लगाई गई है जो जिले के लिए वरदान काम और अभिशाप ज्यादा साबित हो रहा है। क्योंकि सीमेंट फैक्ट्री से भूजल दोहन के कारण शहर में पानी की समस्या खड़ी हो गई है। संसदीय क्षेत्र से कोलकाता मुंबई मुख्य रेल मार्ग और दिल्ली कोलकाता मुख्य राजमार्ग जीटी रोड गुजरा है। लेकिन किसी तरह का उद्योग धंधे इस क्षेत्र में नहीं लगाए गए हैं।
जातीय समीकरण
औरंगाबाद लोकसभा सीट का जातीय समीकरण की बात करें तो सबसे ज्यादा वोटर राजपूत जाति से हैं जिनका वोट लगभग 2 लाख के आसपास है। हालांकि यादव मतदाता भी 1 लाख 90 हजार के लगभग हैं और दूसरे स्थान पर हैं। इसके बाद मुस्लिम मतदाता 1.25 लाख हैं। कुशवाहा मतदाताओं की संख्या भी करीब 1.25 लाख के ही आसपास है। इसके बाद भूमिहारों की जनसंख्या एक लाख और दलित और महादलितों की आबादी लगभग 19 फीसदी यानी 2 लाख से भी ज्यादा है। इनका वोट भी जीत के लिए काफी असर रखता है। वहीं अतिपिछड़ा आबादी भी मजबूत स्थिति में है। अतिपिछड़ा वोट ही निर्णायक होता है।
वर्तमान में इस लोकसभा क्षेत्र में औरंगाबाद जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्र पर महागठबंधन का कब्जा है। जिसमें कुटुंबा से कांग्रेस के राजेश राम, औरंगाबाद सदर से कांग्रेस के आनंद शंकर सिंह और रफीगंज से राष्ट्रीय जनता दल के मोहम्मद नेहालुद्दीन हैं। वहीं इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गया जिले के तीन विधानसभा क्षेत्र में इमामगंज से हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर, टिकारी से हिंदुस्तानी एवं मोर्चा सेक्युलर और गुरुआ से राष्ट्रीय जनता दल का विधायक है।
औरंगाबाद लोकसभा सीट पर मतदान की स्थिति-
2011 की जनगणना के मुताबिक 25 लाख की आबादी वाले औरंगाबाद में औसत साक्षरता दर 70.32 फीसदी है।
यहां कुल मतदाता- 1862027 हैं। जिसमें
पुरुष वोटर- 972621, महिला वोटर- 889373 और थर्ड जेंडर- 33 है।
साल 2014 में यहां 51.19 प्रतिशत और साल 2019 में 52.9 प्रतिशत मतदान हुआ था।
क्या सुशील सिंह दुबारा जीतने की स्थिति में हैं
औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र में 2024 का चुनाव में काफी कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। इस बार भाजपा सांसद सुशील सिंह की जीत की गारंटी नहीं है। लंबे समय से पद पर बने रहने के कारण उनके खिलाफ लोगों में आक्रोश भी है तो कई लोग बदलाव भी चाहते हैं। हालांकि यह सब कुछ इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार पर निर्भर करेगा कि इंडिया गठबंधन किसको अपना उम्मीदवार बनता है।